आज का प्रश्न-229question no-229
प्रश्न-229 : अधिकाल्पित संख्याएँ ( imaginary number) क्या होती है क्या इन का वर्गमूल ज्ञात किया जा सकता है ?
प्रश्न-229 : अधिकाल्पित संख्याएँ ( imaginary number) क्या होती है क्या इन का वर्गमूल ज्ञात किया जा सकता है ?
उत्तर: बात यहाँ से शुरू होती कि किसी ऋणात्मक संख्या का वर्गमूल क्या होगा ?
बाहरवी शताब्दी में गणितज्ञ भास्कर ने बताया था कि 'धनात्मक संख्या का वर्ग धनात्मक होता है और ऋणात्मक संख्या का वर्ग भी धनात्मक होता है इसलिए धनात्मक संख्या का वर्गमूल दुहरा होता है धन एवं ऋण। दुसरी और ऋणात्मक संख्या का कोई वर्गमूल नहीं होता'
परन्तु गणितज्ञ भी गणितज्ञ ही होते हैं अपने काम में कोई बेतुकी चीज़ टपक पड़े तो उस का भी कोई ना कोई अर्थ बना ही देते हैं।
इतालवी गणितज्ञ जेरेल्मो कार्डानो एक बार 10 को दो भागो में बाटना चाहते थे जिनका गुणनफल 40 हो। वे समझ चुके थे कि इस समस्या का कोई परिमेय हल तो है नहीं परन्तु दो असम्भव हलो के रूप में हल पाया जा सकता है
(5+√ ̶15) और (5-√ ̶15)
योगफल = 10
गुणनफल= 40
योगफल = 10
गुणनफल= 40
परन्तु साथ ही लिखते हैं यह हल एकदम अर्थहीन, नकली और अधिकाल्पित है परन्तु मैंने हिम्मत तो की है भले ही वे काल्पनिक हों।
बस, एक बार अवरोध टूटने की देर थी अब बहुत से गणितज्ञ ऋणात्मक संख्याओं के वर्गमूलो का धड़ल्ले से प्रयोग करने लगे परन्तु अभी भी क्षमा याचनाओं के साथ ही प्रयोग करते थे।
बस अब इन संख्याओं को अधिकल्पित संख्याएँ ( imaginary number) कहा जाने लगा
अधिकल्पित संख्याएँ जल्द ही गणित में उतनी अनिवार्य संख्याएँ हो गयी जितनी कि भिन्न या वर्गमूल, और स्थिति यहाँ तक आयी कि उनका उपयोग किये बिना लगभग कोई काम नहीं हो सकता था।
अधिकल्पित संख्याएँ मूल रूप से √-1 से बनाई जा सकती है जिस का अर्थ i से दर्शाया जा सकता है।
जहां i2 = i ˟ i = √ ̶1 ˟ √ ̶1 = √ ̶1 ˟ ̶1 = 1
अब हम आसानी से देख सकते हैं,
√ ̶ 9 = √9 ˟ √ ̶ 1 = 3 ˟ i = 3i
यहाँ स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक साधारण वास्तविक संख्या के प्रतिबिम्ब के रूप में एक अधिकाल्पित संख्या होती है।
जब वास्तविक और अधिकाल्पित संख्या को एक ही पद में मिला कर लिखा जाता है तो उस संख्या को 'सम्मिश्र संख्या' (Complex Number) (e.g. 7 + √ ̶15 = 7 + 15i) कहा जाता है।
अचानक गणित में उत्पन्न हुई यह अधिकाल्पित संख्याएँ दो शताब्दियों तक गुपचुप, रहस्यमयी संख्याएँ बनी रही।
वैसल और आर्गद ने अंततः अधिकाल्पित संख्याओ को ज्यामितीय जामा पहना ही दिया। उन्होंने बताया कि,यह एक काल्पनिक चक्र Imaginary Cycle स्पष्ट होगा। अर्थात 'किसी संख्या को i से गुणा करने का मतलब ज्यामितीय दृष्टि से यह है कि उस संख्या को वामावर्त एक समकोण घुमा दिया गया' चित्र से स्पष्ट है कि i को i से गुणा करने पर i2 एक समकोण से आगे गया और यदि i2 को एक i से फिर गुणा कर दिया जाए तो i3 फिर एक समकोण से आगे गया।
किसी संख्या (3+4i) को i से गुणा करने पर,
(3+4i)i = 3i+4i2 = 3i-4 = (-4+3i )
अब प्राप्त संख्या (-4+3i ) को (-i )से गुणा करने पर
(-4+3i ) (-i ) = 4i-3i2 = 4i+3 = 3+4i
ज्यामितीय हल के बाद से अधिकाल्पित संख्याएँ ( imaginary number) गणित का अनिवार्य भाग बन चुकी हैं।
अब हम आसानी से देख सकते हैं,
√ ̶ 9 = √9 ˟ √ ̶ 1 = 3 ˟ i = 3i
यहाँ स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक साधारण वास्तविक संख्या के प्रतिबिम्ब के रूप में एक अधिकाल्पित संख्या होती है।
जब वास्तविक और अधिकाल्पित संख्या को एक ही पद में मिला कर लिखा जाता है तो उस संख्या को 'सम्मिश्र संख्या' (Complex Number) (e.g. 7 + √ ̶15 = 7 + 15i) कहा जाता है।
अचानक गणित में उत्पन्न हुई यह अधिकाल्पित संख्याएँ दो शताब्दियों तक गुपचुप, रहस्यमयी संख्याएँ बनी रही।
काल्पनिक चक्र imaginary cycle |
किसी संख्या (3+4i) को i से गुणा करने पर,
(3+4i)i = 3i+4i2 = 3i-4 = (-4+3i )
अब प्राप्त संख्या (-4+3i ) को (-i )से गुणा करने पर
(-4+3i ) (-i ) = 4i-3i2 = 4i+3 = 3+4i
ज्यामितीय हल के बाद से अधिकाल्पित संख्याएँ ( imaginary number) गणित का अनिवार्य भाग बन चुकी हैं।
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प्रस्तुति: सी.वी.रमण विज्ञान क्लब यमुनानगर हरियाणा
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