आज का प्रश्न-197 question no-197
प्रश्न-197 : फिबोनाकी (श्रेणी)सिरीस किस खास बात के लिए मशहूर है ?
उत्तर : फिबोनाकी (श्रेणी) मे खास है कि अगला अंक अपने पिछले दो अंको के योग के बराबर होता है और इसके मिथक।
1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55, 89, 144, 233, 377, 610, 987, 1597, ...
फिबोनाकी (श्रेणी) पुनरावृत्ति संबंध (recursion relation) का पालन करती है
P(n) = P(n-1) + P(n-2)
२. फिबोनाकी श्रेणी में केवल 144 ऐसी संख्या है जिसका वर्गमूल 12 है ।
३. ज्यामिति के साथ भी इन संख्याओं का घनिष्ट संबंध है, जैसे, समकोण त्रिभुजों में कर्ण की लंबाई और अन्य दो भुजाओं की लंबाई कई बार फिबोनाकी क्रम में होती है।
४. किन्हीं दो क्रमागत फिबोनाकी संख्याओं का अनुपात 1.6180... के निकट की कोई संख्या होती है। इस अनुपात को स्वर्ण अनुपात कहा जाता है। प्रकृति में इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं।
५. सलीब (ईसाइयों का क्रॉस) की दोनों भुजाओं की लंबाइयां स्वर्ण अनुपात में होती हैं।
प्रश्न-197 : फिबोनाकी (श्रेणी)सिरीस किस खास बात के लिए मशहूर है ?
उत्तर : फिबोनाकी (श्रेणी) मे खास है कि अगला अंक अपने पिछले दो अंको के योग के बराबर होता है और इसके मिथक।
1, 1, 2, 3, 5, 8, 13, 21, 34, 55, 89, 144, 233, 377, 610, 987, 1597, ...
फिबोनाकी (श्रेणी) पुनरावृत्ति संबंध (recursion relation) का पालन करती है
P(n) = P(n-1) + P(n-2)
फिबोनाकी (श्रेणी)सिरीस के साथ कई मिथक जुड़े हुये है जो सत्य हैं या नही गणितज्ञो मे विवादित रहे हैं ।
प्राचीन काल में भारत में एक गणितज्ञ हुए थे, जिनका नाम था पिंगल। कहते हैं वे विख्यात संस्कृत वैय्याकरण पाणिनी के भाई थे। इस तरह वे ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के हुए। पिंगल ने एक ग्रंथ रचा, छंदससूत्र। इसमें उन्होंने संस्कृत में आए छंदों में ह्रस्व और दीर्घ वर्णों की आवृत्ति के क्रम का विश्लेषण किया है। यह विश्लेषण करते समय उन्हें उपर्युक्त प्रकार की संख्याओं के बारे मे पता चला। उन्होंने इन संख्याओं को मात्रामेरु नाम दिया।
उनके बाद के अनेक भारतीय गणितज्ञों ने भी संख्याओं के इस क्रम पर विस्तार से लिखा है। इनमें प्रमुख हैं गोपाल (1135 ईस्वीं), हेमचंद्र (1150 ईस्वीं), आदि।
भारतीय गणित की यह अवधारणा अरबों के माध्यम से यूरोप पहुंची। वहां एक इतालवी गणितज्ञ ने इस तरह की संख्याओं को आधुनिक गणित की शब्दावली में प्रस्तुत किया। इनका नाम था फिबोनाकी, लियोनार्डो पीसा (1170-1250), उपनाम फिबोनैकी, पीसा, इटली में पैदा हुआ था। इनका समय हेमचंद्र से 70 वर्ष बाद का है। इन्होंने छंद शास्त्र के संबंध में नहीं बल्कि आदर्श स्थिति में खरगोशों की संतानोत्पत्ति के संदर्भ में इन संख्याओं की व्याख्या की।
उनके बाद के अनेक भारतीय गणितज्ञों ने भी संख्याओं के इस क्रम पर विस्तार से लिखा है। इनमें प्रमुख हैं गोपाल (1135 ईस्वीं), हेमचंद्र (1150 ईस्वीं), आदि।
भारतीय गणित की यह अवधारणा अरबों के माध्यम से यूरोप पहुंची। वहां एक इतालवी गणितज्ञ ने इस तरह की संख्याओं को आधुनिक गणित की शब्दावली में प्रस्तुत किया। इनका नाम था फिबोनाकी, लियोनार्डो पीसा (1170-1250), उपनाम फिबोनैकी, पीसा, इटली में पैदा हुआ था। इनका समय हेमचंद्र से 70 वर्ष बाद का है। इन्होंने छंद शास्त्र के संबंध में नहीं बल्कि आदर्श स्थिति में खरगोशों की संतानोत्पत्ति के संदर्भ में इन संख्याओं की व्याख्या की।
आजकल ये संख्याएं इस इतालवी गणितज्ञ के नाम से फिबोनाकी संख्याओं के रूप में ही अधिक जानी जाती हैं।
कुछ और विशेषतायें
१. फिबोनाकी श्रेणी में हर तीसरी संख्या सम होती है, अर्थात उसे 2 से विभाजित किया जा सकता है।२. फिबोनाकी श्रेणी में केवल 144 ऐसी संख्या है जिसका वर्गमूल 12 है ।
३. ज्यामिति के साथ भी इन संख्याओं का घनिष्ट संबंध है, जैसे, समकोण त्रिभुजों में कर्ण की लंबाई और अन्य दो भुजाओं की लंबाई कई बार फिबोनाकी क्रम में होती है।
४. किन्हीं दो क्रमागत फिबोनाकी संख्याओं का अनुपात 1.6180... के निकट की कोई संख्या होती है। इस अनुपात को स्वर्ण अनुपात कहा जाता है। प्रकृति में इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं।
५. सलीब (ईसाइयों का क्रॉस) की दोनों भुजाओं की लंबाइयां स्वर्ण अनुपात में होती हैं।
६. ल्योनार्डो डि विन्सी की मशहूर पेंटिंग मोनालिसा के बारे में कहा जाता है कि वह स्वर्ण अनुपात को चरितार्थ करती है।
६. पौधों में पत्तों, डालियों, पंखुड़ियों आदि की संख्याएं कई बार फिबोनाकी श्रेणी के अनुसार होती हैं। ऐसे फूलों की बहुतायत है जिनमें पंखुड़ियों की संख्या 3,5,8,13,21 आदि होती है, यानी फिबोनाकी संख्याओं के अनुसार। अनन्नास के कांटों का विन्यास भी फिबोनाकी श्रेणी में होता है। वैज्ञानिक मानते हैं कि इस तरह की संख्याओं में पंखुड़ियां, पत्तियां आदि होने से उपलब्ध जगह का सबसे अच्छा उपयोग होता है, या सूर्यप्रकाश को अधिकतम मात्रा में सोखने के लिए यह सर्वोत्तम विन्यास होता है।
७.समुद्र में रहनेवाले कुछ तरह के जीवों के शंखों के घुमाव को स्वर्ण आयतों के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
७.समुद्र में रहनेवाले कुछ तरह के जीवों के शंखों के घुमाव को स्वर्ण आयतों के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
राज भाटिय़ा जी गिरिजेश राव जी google + पर,आशीष श्रीवास्तव जी, ana जी का और फेसबुक मित्रों का बहुत बहुत धन्यवाद
सभी टिप्पणी कर्ताओं का जी धन्यवादप्रस्तुति: सी.वी.रमण विज्ञान क्लब यमुनानगर हरियाणा
5 टिप्पणियां:
वह मरते समय लियोनार्दो द विन्ची के एक चित्र की आकृति बनाते हुये, फिबोनाकी सिरीस के नम्बरो के साथ, संकेत के रूप में छोड़ जाता है।
फिबोनाकी (श्रेणी) मे अगला अंक अपने पिछले दो अंको के योग के बराबर होता है।
1,1,2,3,5,8,13,21,.......
फिबोनाकी (श्रेणी) पुनरावृत्ति संबंध (recursion relation) का पालन करती है
P(n) = P(n-1) + P(n-2)
इसके अतिरिक्त इसके साथ कई मिथक जुड़े हुये है जो सत्य नही है। इससे जुड़े मिथको के संबध मे गणितज्ञो की राय
http://www.lhup.edu/~dsimanek/pseudo/fibonacc.htm
http://www.maa.org/devlin/devlin_05_07.html
गिरिजेश राव जी google + पर - तथाकथित दैवी अनुपात। सृष्टि इसका पालन करती पाई गई है। हाँ, यह वक्र संतत नहीं है, एक भ्रम है।
आशीष श्रीवास्तव ने आपकी पोस्ट " आज का प्रश्न-197 question no-197 " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
फिबोनाकी (श्रेणी) मे अगला अंक अपने पिछले दो अंको के योग के बराबर होता है।
1,1,2,3,5,8,13,21,.......
फिबोनाकी (श्रेणी) पुनरावृत्ति संबंध (recursion relation) का पालन करती है
P(n) = P(n-1) + P(n-2)
इसके अतिरिक्त इसके साथ कई मिथक जुड़े हुये है जो सत्य नही है। इससे जुड़े मिथको के संबध मे गणितज्ञो की राय
http://www.lhup.edu/~dsimanek/pseudo/fibonacc.htm
http://www.maa.org/devlin/devlin_05_07.html
it generates golden ratio
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