आज का प्रश्न-८४ question no.84
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Qus.no 84 : किस भारतीय वैज्ञानिक ने संगीत वाद्ययंत्रों पर बहुत काम किया है यहाँ तक कि अपना शुरुआती शोध भारतीय वाद्ययंत्रों से सम्बन्धित रखा ?
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उत्तर: भारतीय वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमण जी की संगीत मे बेहद रूचि थी.उन्होंने संगीत वाद्य यंत्रों के एकास्टिक पर काम किया और वह ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय वाद्य यंत्र तबला तथा मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) प्रकृति का भी पता लगाया था
सन् 1917 में लंदन में ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के विश्वविद्यालयों का सम्मेलन था। रामन ने उस सम्मेलन में कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। यह रमण की पहली विदेश यात्रा थी। इस विदेश यात्रा के समय उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना घटी। पानी के जहाज से उन्होंने भू-मध्य सागर के गहरे नीले पानी को देखा। इस नीले पानी को देखकर रामन के मन में एक विचार आया कि, यह नीला रंग पानी का है या नीले आकाश का सिर्फ परावर्तन। बाद में रामन ने इस घटना को अपनी खोज द्वारा समझाया कि यह नीला रंग न पानी का है न ही आकाश का। यह नीला रंग तो पानी तथा हवा के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन से उत्पन्न होता है।क्योंकि प्रकीर्णन की घटना में सूर्य के प्रकाश के सभी अवयवी रंग अवशोषित कर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं, परंतु नीले प्रकाश को वापस परावर्तित कर दिया जाता है। सात साल की कड़ी महनत के बाद रामन ने इस रहस्य के कारणों को खोजा था। उनकी यह खोज 'रामन प्रभाव' के नाम से प्रसिद्ध है.उनके सिद्धांत का इस्तेमाल कर दुनिया के कई अन्य वैज्ञानिकों ने नए सिद्धांत प्रतिपादित किए.
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आशीष श्रीवास्तव जी का धन्यवाद
फेसबुक साथियों का धन्यवाद
चित्र स्रोत: भारतकोश |
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Qus.no 84 : किस भारतीय वैज्ञानिक ने संगीत वाद्ययंत्रों पर बहुत काम किया है यहाँ तक कि अपना शुरुआती शोध भारतीय वाद्ययंत्रों से सम्बन्धित रखा ?
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उत्तर: भारतीय वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमण जी की संगीत मे बेहद रूचि थी.उन्होंने संगीत वाद्य यंत्रों के एकास्टिक पर काम किया और वह ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय वाद्य यंत्र तबला तथा मृदंगम के संनादी (हार्मोनिक) प्रकृति का भी पता लगाया था
सन् 1917 में लंदन में ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के विश्वविद्यालयों का सम्मेलन था। रामन ने उस सम्मेलन में कलकत्ता विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। यह रमण की पहली विदेश यात्रा थी। इस विदेश यात्रा के समय उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना घटी। पानी के जहाज से उन्होंने भू-मध्य सागर के गहरे नीले पानी को देखा। इस नीले पानी को देखकर रामन के मन में एक विचार आया कि, यह नीला रंग पानी का है या नीले आकाश का सिर्फ परावर्तन। बाद में रामन ने इस घटना को अपनी खोज द्वारा समझाया कि यह नीला रंग न पानी का है न ही आकाश का। यह नीला रंग तो पानी तथा हवा के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन से उत्पन्न होता है।क्योंकि प्रकीर्णन की घटना में सूर्य के प्रकाश के सभी अवयवी रंग अवशोषित कर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं, परंतु नीले प्रकाश को वापस परावर्तित कर दिया जाता है। सात साल की कड़ी महनत के बाद रामन ने इस रहस्य के कारणों को खोजा था। उनकी यह खोज 'रामन प्रभाव' के नाम से प्रसिद्ध है.उनके सिद्धांत का इस्तेमाल कर दुनिया के कई अन्य वैज्ञानिकों ने नए सिद्धांत प्रतिपादित किए.
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प्रस्तुति: सी.वी.रमण विज्ञान क्लब यमुनानगर हरियाणा
1 टिप्पणी:
नोबेल पुरस्कार विजेता प्रथम भारतीय वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रामण, रामण प्रभाव के आविष्कारक !
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